कानून व्यवस्था का मखौल, हुआ खबर का असर, हाईकोर्ट ने जन्मदिन मनाने के लिए सड़क जाम करने के मामले में पुलिस की नरम कार्रवाई पर लिया संज्ञान

A mockery of law and order, the news had an impact, the High Court took cognizance of the soft action of the police in the matter of blocking the road to celebrate a birthday

रायपुर/बिलासपुर : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक आदेश में राज्य पुलिस और जिला प्रशासन की सार्वजनिक व्यवस्था के घोर उल्लंघन के प्रति उनकी निष्क्रियता और नरम व्यवहार के लिए कड़ी आलोचना की है. जहां कुछ व्यक्तियों के समूह ने जन्मदिन मनाने के लिए रायपुर में एक सार्वजनिक सड़क को अवरुद्ध कर दिया था. यह मामला एक स्वप्रेरणा जनहित याचिका (डब्ल्यूपीपीआईएल संख्या 21/2025) के रूप में शुरु किया गया था. जो 29 और 30 जनवरी, 2025 को Mirror24 News द्वारा रिपोर्ट किए गए एक वायरल वीडियो के बाद शुरु हुआ था.
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रवींद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने कानून प्रवर्तन में स्पष्ट पक्षपात पर गहरी चिंता व्यक्त की, इस बात पर जोर देते हुए कि “पुलिस अपनी ताकत दिखाती है और कानून का शासन केवल गरीब लोगों और असहाय लोगों पर लागू होता है. लेकिन जब अपराधी एक अमीर व्यक्ति होता है. तो नियम और कानून को ताक पर रख दिया जाता है.
यह घटना रायपुर के रायपुरा चौक पर हुई, जहां रोशन कुमार पांडे के नेतृत्व में कुछ लोगों ने कथित तौर पर सड़क के बीच में दो कारें खड़ी कर दीं और कार के बोनट पर कई केक काटकर जन्मदिन मनाया. उसके बाद आतिशबाजी की. इस अवरोध की वजह से यातायात जाम हो गया. जिससे यात्रियों में निराशा फैल गई. जो लगातार हॉर्न बजा रहे थे. लेकिन समूह ने उनकी अनदेखी की.
वायरल वीडियो और बाद में मीडिया में आई खबरों से पता चला कि मुख्य आरोपी एक प्रमुख व्यवसायी का बेटा था. जो सुपर मार्केट का मालिक है. सार्वजनिक सड़कों के दुरुपयोग और पुलिस के हस्तक्षेप की कमी पर लोगों में आक्रोश की वजह से हाईकोर्ट ने मामले का स्वतः संज्ञान लिया.
अदालत ने निम्नलिखित कानूनी पहलुओं पर विचार किया:
1. सार्वजनिक सड़कों को अवरुद्ध करना
– बिना अनुमति के सार्वजनिक सड़कों को अवरुद्ध करने का कार्य मोटर वाहन अधिनियम, 1988 का उल्लंघन है. आरोपी पर अधिनियम की धारा 122 के तहत मात्र ₹300 का जुर्माना लगाया गया. जो सड़कों को अनधिकृत रूप से अवरुद्ध करने से संबंधित है.
– अदालत ने सवाल किया कि अपराधियों के खिलाफ कोई सख्त कानूनी कार्रवाई, जैसे वाहन को जब्त करना या एफआईआर दर्ज करना, क्यों नहीं की गई.
2. सार्वजनिक सुरक्षा और सार्वजनिक उपद्रव
– अदालत ने बताया कि आतिशबाजी के साथ इस तरह के लापरवाह उत्सव से सार्वजनिक सुरक्षा को खतरा हो सकता था.
– पीठ ने चिंता जताई कि अगर कार्यक्रम के दौरान एम्बुलेंस या आपातकालीन वाहन को अवरुद्ध किया जाता, तो जान जा सकती थी.
3. पुलिस की निष्क्रियता और पक्षपात
– अदालत ने घटना होने पर तत्काल कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए पुलिस अधिकारियों को फटकार लगाई.
– इसने सवाल उठाया कि क्या आरोपी की प्रभावशाली पृष्ठभूमि के कारण पुलिस ने नरमी बरती, क्योंकि आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्तियों से जुड़ी ऐसी घटनाओं में अक्सर कठोर दंड का प्रावधान होता है.
अदालत की टिप्पणियां और आदेश
हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणियों से मामले के संचालन पर उसकी नाराजगी झलकती है:
– “यह समझ से परे है कि पुलिस अधिकारियों को उन अपराधियों के खिलाफ तत्काल और कठोर कार्रवाई करने से किसने रोका.”
– “बिना किसी अनुमति या अधिकार के व्यस्त सड़क को अवरुद्ध करने के लिए 300 रुपये का जुर्माना लगाना, सिर्फ दिखावा है.”
– “यह कानून और व्यवस्था का मजाक है। राज्य के अधिकारियों का ऐसा आचरण ऐसे लोगों के मनोबल को बढ़ाने वाला होगा.”
मामले की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को एक व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया. जिसमें विस्तृत जानकारी हो.
1. आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ की गई कार्रवाई.
2. भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रस्तावित उपाय.
3. इस बात पर स्पष्टीकरण कि कठोर कार्रवाई क्यों नहीं की गई.
मामले को अगली सुनवाई के लिए 6 फरवरी, 2025 को सूचीबद्ध किया गया है.

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